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पारिवारिक जीवन चक्र किसे कहते हैं 2023

पारिवारिक जीवन चक्र

पारिवारिक जीवन चक्र

पारिवारिक जीवन चक्र (Family Life Cycle)

पारिवारिक जीवन चक्र एक प्रक्रिया है, जो विभिन्न अवस्थाओं में विभाजित है, जिससे व्यक्ति परिवार के एक सदस्य के रूप में गुजरता है। जिस प्रकार मनुष्य बाल्यावस्था से प्रौढ़ावस्था से वृद्धावस्था तक शारिरिक अवस्थाओं से गुजरते है, उसी प्रकार परिवार भी विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते है। पारिवारिक जीवन चक्र दो लोगो के विवाह की स्वतंत्रता से आरंभ होता है। इसकी यह विस्तार अवस्था है क्योंकि बालक उत्पन्न होते है, उनका पालन पोषण किया जाता है तथा अभिभावक बालकों के साथ व्यस्त हो जाते है और अपना स्वतंत्र जीवन आरंभ करते हैं, बालकों का कैरियर बनाते हैं और उनका विवाह करते हैं तथा वृद्ध दंपत्ति फिर अकेले रहते है।

यद्यपि यह पारिवारिक जीवन चक्र पश्चिमी और शहरी समाजों में लागू है जहां नाभिक परिवारों का होना आम बात है। यह पारिवारिक जीवन चक्र माडल संयुक्त परिवार, विस्तारित परिवार, अथवा वैकल्पिक परिवार विन्यासों के मामले में भी उपयुक्त नहीं बैठता। भारतीय संदर्भ में पारिवारिक जीवन चक्र उपागम को अनुकूल बनाने का प्रयास किया गया है, जिसमें उन चुनौतियों को सम्मिलित किया गया है, जिनका सामना समाज कार्य व्यवसायिक लोगों के साथ कार्य करते हुये तथा पारिवारिक जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं में करते है।

पारिवारिक जीवन चक्र की परिभाषा – वे संवेगात्मक और बौद्धिक अवस्थाएं है, जिनसे व्यक्ति एक परिवार के सदस्य के रूप में बाल्यावस्था से सेवानिवृत्ति तक के वर्षो से गुजरता है।

पारिवारिक जीवन चक्र उपागम मध्यवर्गीय नाभिक परिवारों पर अधिक लागू होता है। गरीबी की रेखा से नीचे रह रहे परिवार, प्रायः संबंधित पारिवारिक सदस्यों की वृद्धि और विकास से संबंधित अनेक कार्य नहीं कर पाते। वैकल्पिक पारिवारिक विन्यास जैसे महिला प्रधान परिवार और दोहरी आय वाले परिवार, बालक विहीन परिवार, पारिवारिक जीवन चक्र की सभी अवस्थाओं से वैसे नहीं गुजरते जैसा कि बताया गया है। संयुक्त परिवार के विन्यासों में भी इनकी रचना, जीवन शैली और कार्यशैली के कारण विभिन्न कार्य और नियंत्रणकारी (सामना करने की) योग्यताए होती है।

पारिवारिक जीवन चक्र बताता है कि सफल परिवर्तन रोगों और संवेगात्मक अथवा तनाव संबंधी विकारों को रोक सकता है। पारिवारिक जीवन चक्र की जानकारी विषेषरूप से परिवार और साधारण रूप से समाज के कल्याण के लिए पारिवारिक जीवन के ज्ञानवर्धन कार्यक्रमों की योजना बनाने और कार्यान्वयन करने में भी आपकी सहायता करेगी।

पारिवारिक जीवन चक्र की अवस्थाएं

पारिवारिक जीवन चक्र की अवस्थाओं का अध्ययन करना आवश्हैयक है क्योंकि पारिवारिक जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं मे परिवारों की आवष्यकताये, सदस्यों की आवष्यकतायें, समस्यायें और कठिनाईयां अलग अलग होती है। जिससे समाज कार्य व्यावसायिकों के रूप में, पारिवारिक जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं में परिवारों की आवष्यकताओं और संसाधनों का निर्धारण कर सकेंगे तथा कौशलों में विशेज्ञता प्राप्त करने एवं प्रत्येक अवस्था की घटनाओं में परिवारों के समक्ष आने वाली समस्याओं के मामले में आप अपेक्षित मध्यस्थता प्रदान कर सकते है।

पारिवारिक जीवन चक्र की अवस्थायें निम्न लिखित है-

स्वतंत्रता अवस्था

स्वतंत्रता अवस्था मूल रूप से पारिवारिक जीवन चक्र में प्रवेष करने की अवस्था है। यह एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण अवस्था है क्यों कि जीवन में आगे आने वाली अवस्थाओं को सफलतापूर्वक पूरा करना इसी अवस्था पर निर्भर करता है। यह अवस्था प्रौढ़ावस्था होती है। इस अवस्था में व्यक्ति भावनात्मक रूप से अपने परिवार से अलग हो जाता है। व्यक्ति संवेगात्मक, शारिरिक, सामाजिक और वित्तिय रूप से पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने का प्रयास करते है। इस अवस्था में व्यक्ति आपने व्यक्तित्व का विकास करता हैं जिससे वह समाज में अपनी पहचान बना सके।

चिंता का मुद्दा  इस अवस्था में व्यक्तियों को कुछ कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। जो उसके व्यक्तित्व विकास में बाधा डाल सकती है।

प्रवेश अवस्था

स्वतंत्रता के पश्चात पारिवारिक जीवन चक्र में अगली अवस्था दांपत्य अवस्था है। इस अवस्था में व्यक्ति विवाह संस्था में प्रवेश करता है, और किसी के साथ प्रतिबद्ध संबंध निर्माण करता है। विवाह के बाद प्रायः लड़की अपने पति के परिवार में जाती है अथवा दंपति नई परिवार इकाई स्थापित कर लेते है। विवाह के बाद अनेक संबंधों से जुडतें हैं, जिनके साथ समायोजन करने की जरूरत होती है।

एक स्त्री विवाह से पूर्व जिन विचारधाराओं, माहोल, मूल्यों में सामाजीकरण होता है, विवाह के बाद परिवार व्यवस्था में परिवर्तन आ जाता हैं। प्रायः यह माना जाता है कि दो व्यक्ति अपने उन निजी विचारों, अपेक्षाओं और मूल्यों के साथ वैवाहिक संबंध में प्रवेश करते है, जिन्हें उनके अनुभवों और मूल परिवार द्वारा आकार दिया जाता है।

नव विवाहित युवा दंपति अपने स्वयं की पारिवारिक इकाई स्थापित करते है। अपने स्वयं की पारिवारिक संरचना में रहने वाला दंपति संप्रेषण करने और विभिन्न कार्यकलापों का आदान प्रदान करने में अधिक स्वतंत्रता और एकांन्तता का अनुभव करता है। पारिवारकि जीवन चक्र की अन्य अवस्थाआकें की तुलना में दांपत्य अवस्था में पति और पत्नी के पास पर्याप्त समय संसाधन होता है।

चिंता का मुद्दा – विवाह के बाद नव दंपतियों को कुछ कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। प्रवेश अवस्था में आने वाली कटिनाईयॉ इस प्रकार है-

विस्तार अवस्था

लालन पालन – लालन पालन पारिवारिक जीवन चक्र की सर्वाधिक चुनौतिपूर्व अवस्था है। सामान्यतौर पर भारतीय संदर्भ में विवाह का उद्देश्य संतति को जारी रखना है। वास्तव में यह कहा जाता है कि संतान के बिना परिवार अधुरा है। संतानहीनता को अभिशाप माना जाता है। अविवाहित होते हुए अभिभावक बनना भी विशेषकर महिलाओं के लिए एक वर्जना है।

आज के समय में अनेक दंपति व्यस्त कैरियर वाली जीवन शैली के कारण मुख्य रूप से बच्चे नहीं चाहते। इस अवस्था में बालकों का सामाजीकरण अभिभावकों का एक मुख्य कार्य होता है। इसमें शिशु के विकास कार्यो को सफलतापूर्वक करने में उसकी सहायता करना है जैसे शैशवास्था में बैठना, सरकना, खड़े होना, बालकों में भाषा विकास, शारीरिक विकास, सामाजिक कौशल और जैसे-जैसे वे बड़े होते है, उनमें शिष्टाचार व्यवहारकुशलता में विशेषज्ञता प्राप्त करना।

चिंता के मुद्दे या समस्या  

विस्तार अवस्था में बच्चे के जन्म के बाद और बच्चे के जन्म न होने पर भी दंपतियों को अनेक कठिनाईयों का समना करना पड़ता है। इस अवस्था में होने वाली समस्यॉयें निम्नलिखित है –

पारविारिक जीवन चक्र की अवस्थाओं में आने वाली समस्याओं में समाज कार्य की भूमिका

समाज कार्य व्यवसायिकों के रूप में, समाज कार्य कर्ता पारिवारिक जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं में पारिवारों की आवश्यकताओं और संसाधनों का निर्धारण कर सकेंगे तथा कौशलों में विशेषज्ञता प्राप्त करने एवं प्रत्येक अवस्था की घटनओं में परिवारों के समक्ष आनेवाली समस्याओं के मामले में समाज कार्य कर्ता अपेक्षित मध्यस्था प्रदान कर सकते है।

समाज कार्यकर्ताओं की अन्य भूमिका, परिवारों में प्रत्येक में प्रत्येक अवस्था की चुनौतियों और आवश्यकताओं के बारे में जागरूकता उत्पन्न करना होगा ताकि परिवार की विभिन्न व्यवस्थाओं में और परिवार तथा सामाजिक पर्यावरण के बीच कुसमायोजन कम से कम हो। पारिवारिक जीवन चक्र की समस्यायें जिनमें समाज कार्य कर्ता परिवार के सदस्याओं को सहायता प्रदान कर सकता है, निम्न प्रकार है-

इसके अतिरिक्त समाज कार्यकर्ता की भूमिका पर्यावरण में विभिन्न सामजिक व्यवस्थाओं और संबंधित पारिवारिक सदस्यों के बीच किसी भी प्रकार के असंगत संबंध अथवा परिवार के अंदर किसी भी परस्पर विरोधी संबंध को सुधारने की होगी।

जो युवक अपना पारिवारिक जीवन आरंभ करने जा रहे है, उनकी सहायता करने का हर प्रयास किया जाना चाहिए उन्हें सहसंबंध प्रेम और घनिष्ठतां,परिपक्वता विकसित करने के लिए स्वयं को तैयार करना चाहिए और विवाहित दंपतियों के रूप में उनसे अपेक्षित सामाजिक भूमिकाओं को निष्पादित करने के लिए कौशन विकसित करने चाहिए।

जो व्यक्ति घनिष्ठता और प्रेम की सक्षमता विकसित करने में असमर्थ रहते है, वे अलगाव और परायेपन में रहते है जिसके लिए रोगहर स्तर पर समाज कार्यकर्ताओं की भूमिका की आवश्यकता पड़ती हैं।

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