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औद्योगिक सम्बन्धों प्रमुख विशेषताएंऔद्योगिक सम्बन्धों

औद्योगिक सम्बन्धों के सिद्धान्त

औद्योगिक सम्बन्धों के सिद्धान्त श्रमिक वर्ग तथा नियोक्ता के मध्य मधुर सम्बन्धों की स्थापना करते हैं । जब तक इन दोनों वर्गों सम्बन्ध मधुर नहीं बनाये जाएंगे उस समय तक कोई भी सिद्धान्त प्रभावी नहीं होगा । इसलिए सिद्धान्त ऐसे होने चाहिए जिनका पालन करने से जल्दी से जल्दी इन दो वर्गों के बीच आपसी मनमुटाव समाप्त हो सकें तभी संगठन में अच्छे औद्योगिक सम्बन्धों का निर्माण हो सकेगा ।

औद्योगिक सम्बन्ध किसे कहते हैं ?

औद्योगिक सम्बन्ध को अंग्रेजी में “Industrial Relations” कहते हैं। यह शब्द विशेष रूप से विभिन्न उद्योगों में कर्मचारियों और प्रबंधन विभाग के बीच सम्पर्क, सहयोग और संबंधों को संक्षेप में दर्शाता है। औद्योगिक सम्बन्ध में कामगारों के अधिकारों, श्रमिक संगठन, कामकाजी नियम और मुद्दे का प्रबंधन शामिल होता है।

औद्योगिक सम्बन्धों की प्रमुख विशेषतायें

औद्योगिक सम्बन्ध में 10 प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

  1. कामगारों के अधिकार: औद्योगिक सम्बन्ध में, कामगारों के अधिकारों का संरक्षण और सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण होता है। यह उन्हें उचित वेतन, कामकाजी शर्तें और सुरक्षित शरण सुनिश्चित करता है।
  2. कामकाजी नियम और विधियां: औद्योगिक सम्बन्ध में नियम और कानूनी विधियां कामगारों और उद्योगिक संस्थान के बीच समझौते का आधार बनती हैं।
  3. सम्मिलन और संगठन: कामगारों के एक साथ मिलकर अपने अधिकारों की रक्षा करने और समस्याओं का समाधान करने के लिए संगठनों की गठन होती है।
  4. प्रतिष्ठा: औद्योगिक सम्बन्ध में, कामगारों को सम्मान दिया जाना चाहिए और उनकी योग्यता और मेहनत का सम्मान किया जाना चाहिए।
  5. दायित्व: संबंधित पक्षों के बीच दायित्व का भागीदारी महत्वपूर्ण है। कामगारों के हितों के लिए उद्योग संस्थानों और सरकार के बीच सहयोग और समझौते की आवश्यकता होती है।
  6. सुरक्षा और शारीरिक सुरक्षा: कामगारों की सुरक्षा और उनके शारीरिक सुरक्षा की योजना और कार्यान्वयन करना और सुनिश्चित करना जरूरी होता है।
  7. न्यायपालिका: औद्योगिक सम्बन्धों में न्यायपालिका का महत्व होता है, जो विवादों और विवादों को न्यायिक रूप से समाधान करती है।
  8. बिन्दुवादी संवाद: उद्योग संस्थान और कामगारों के बीच संवाद और समझौता के लिए बिन्दुवादी दृष्टिकोन अपनाना महत्वपूर्ण होता है।
  9. सहायक संस्थाएं: सम्बन्धित पक्षों की सहायता करने के लिए सामर्थ्यवर्धक संस्थाएं अपनाना आवश्यक होता है, जो समस्याओं का समाधान करती हैं और सम्मजौते में सहायक बनती हैं।
  10. योगदान: औद्योगिक सम्बन्ध में सम्मिलित पक्षों का योगदान मिलकर समाधान और सम्मान को प्रोत्साहित करता है और सोशल समस्याओं को हल करने में मदद करता है।
औद्योगिक सम्बन्धों के सिद्धान्त

औद्योगिक सम्बन्धों के प्रमुख सिद्धान्त

औद्योगिक सम्बन्धों के प्रमुख औद्योगिक सिद्धान्त निम्न हैं;

  • श्रमिक संघ वाद: यह सिद्धान्त कामगारों को उनके अधिकारों की रक्षा और सुरक्षा के लिए संगठित होने की जरूरत को प्राथमिकता देता है। श्रमिक संघों के माध्यम से कामगारों की मुद्दों को समाधान करने और उनके हितों का समर्थन करने का प्रयास किया जाता है।
  • उत्पादन के लाभ संबंधी सिद्धान्त: यह सिद्धान्त व्यापार या उद्योग में कामगारों के लाभ और उत्पादकता के बीच संतुलन की प्रोत्साहन करता है। कामगारों को उचित मजदूरी, अच्छी कामकाजी शर्तें, और अन्य लाभों के अधिकार के लिए विभिन्न उपायों का प्रोत्साहन किया जाता है।
  • श्रम और प्रबंधन संबंधी समरसता सिद्धान्त: इस सिद्धान्त के अनुसार, कामगारों और प्रबंधन के बीच समरसता और सहयोग का महत्व है। यह सिद्धान्त संबंधों को मजबूत बनाने, कर्मचारी के प्रगति को प्रोत्साहित करने, और समस्याओं को समाधान करने पर जोर देता है।
  • विकासवादी सिद्धान्त: यह सिद्धान्त उद्योगों को समाज में विकास के लिए जिम्मेदार बनाता है। इसके तहत उद्योगिक संस्थानों को सामाजिक और आर्थिक रूप से समर्थन करने, क्षेत्रीय विकास को प्रोत्साहित करने, और सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए योजनाएं बनाने का प्रयास किया जाता है।
  • संगठित प्रतिबंध और विरोध सिद्धान्त: यह सिद्धान्त यह सिद्धान्त कामगारों के द्वारा धरने, प्रदर्शन, विरोध और अन्य आंदोलनों को संगठित रूप से करने के पक्ष में होता है। इसका उद्देश्य उनके हकों की रक्षा करना और समस्याओं के समाधान के लिए अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना होता है।
  • उद्योगिक सम्बन्ध और संस्थानिक संबंधों के न्यायिक संबंधी सिद्धान्त: इस सिद्धान्त के अनुसार, औद्योगिक सम्बन्धों और संस्थानिक संबंधों को समस्याओं के समाधान के लिए न्यायिक रूप से अधिकारिक जवाबदेही के लिए समर्थित किया जाता है।
  • समावेशीकरण: औद्योगिक सम्बन्धों के सिद्धान्त में समावेशीकरण की भूमिका होती है, जो समस्याओं के समाधान के लिए सभी संबंधित पक्षों को सम्मिलित करता है। समावेशीकरण के माध्यम से विभिन्न पक्ष और समूह आपसी समझदारी और समझौते की दिशा में काम करते हैं।
  • भागीदारी और सहयोग: औद्योगिक सम्बन्धों के सिद्धान्त में भागीदारी और सहयोग का महत्वपूर्ण स्थान होता है। इससे संबंधित पक्षों के बीच संवाद बढ़ता है और समस्याओं का समाधान करने में मदद मिलती है।
  • सामाजिक न्यायवादी सिद्धान्त: यह सिद्धान्त यह सिद्धान्त सामाजिक न्यायवाद के लिए विशेष जरूरत है। इससे यह प्रोत्साहित किया जाता है कि उद्योग संस्थान और कामगारों के बीच समान और न्यायिक संबंध हों, जिससे समस्याओं का समाधान और समाज के हितों का समर्थन हो सके।
  • युक्तिवादी सिद्धान्त: यह सिद्धान्त यह सिद्धान्त विभिन्न पक्षों और समूहों के बीच युक्तिवादी रूप से समझौते के लिए प्रोत्साहन करता है। इसका उद्देश्य समस्याओं का समाधान करने और सहयोगी समझदारी दिशा में समर्थित करना होता है।
  • औद्योगिक प्रजातन्त्र की स्थापना करना: अच्छे औद्योगिक सम्बन्धों के लिए औद्योगिक प्रजातन्त्र की स्थापना करना आवश्यक है । इसके लिए कर्मचारियों को प्रबन्ध में भागीदार बनाकर उनका सहयोग प्राप्त करना चाहिये । दोनों वर्गों के संघों के बीच आपसी तालमेल की स्थापना जब तक श्रम संघ तथा नियोक्ता सघों के बीच आपसी तालमेल विचारों का आदान-प्रदान नहीं होगा उस समय तक औद्योगिक सम्बन्ध अच्छे नहीं हो सकते इसी कारण इन दोनों वर्गों के बीच विचारों का आदान-प्रदान आवश्यक है ।
  • श्रम संघ तथा नियोक्ता संघ परस्पर अच्छे सम्बन्ध स्थापित करने के इच्छुक हो: जब तक श्रम संघ तथा नियोक्ता संघों की इच्छा संगठन में अथवा देश में अच्छे सम्बन्ध स्थापित करने की नहीं होगी उस समय तक अच्छे औद्योगिक सम्बन्ध स्थापित नहीं हो सकते । इसके लिए प्रबन्धकों को श्रमिकों की भर्तीए चुनाव करने की विधियाँए प्रशिक्षणए मजदूरीए कार्य करने की दशाएँए पदोन्नति आदि को बेहतर बनाना चाहिए ।
  • कर्मचारियों को मान्यता देना: संगठन में कर्मचारियों को पदानुसार मान्यता देनी चाहिए जैसेए श्प्रबन्धक के बिना श्रमिक वर्ग उसी प्रकार बेकार सिद्ध होंगे जिस प्रकार श्रमिक के बिना प्रबन्धक ।जब श्रमिकों को अधिक मान्यता दी जायेगी तो संगठन में हड़ताल, घिराव, तोड़फोड़, कार्य के प्रति लापरवाही, अधिक अनुपस्थिति आदि, सब समाप्त हो जायेंगे तथा अच्छे सम्बन्धों का निर्माण होगा ।
  • सामूहिक सौदेबाजी: यदि संगठन में कोई श्रम.विवाद उत्पन्न हो जाये तो उनका समाधान सामूहिक सौदेबाजी से करना चाहिए। यह प्रणाली अच्छे औद्योगिक सम्बन्धों में सहयोग प्रदान करती है ।

औद्योगिक सम्बन्धों के सिद्धान्त का महत्त्व

औद्योगिक सम्बन्धों का महत्व व्यापार और उद्योग के संबंधों में होता है और समस्त समूहों के लिए यह निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण है:

  1. श्रमिक और कर्मचारी का हित: औद्योगिक सम्बन्धों के माध्यम से श्रमिकों और कर्मचारियों के हित की सुनिश्चित की जाती है। यह उन्हें उचित मजदूरी, अच्छी कामकाजी शर्तें, और सुरक्षित शरण सुनिश्चित करता है।
  2. उद्योगिक संस्थान के विकास को समर्थित करता है: औद्योगिक सम्बन्धों के माध्यम से समस्त उद्योगिक संस्थानों को विकास के लिए समर्थित किया जाता है। यह उन्हें अधिक उत्पादकता, लाभकारीता, और वृद्धि के लिए अवसर प्रदान करता है।
  3. संघर्षों के समाधान: उद्योगिक सम्बन्धों के माध्यम से संघर्षों के समाधान के लिए योजनाएं बनाई जाती हैं। समझौते और सहयोग के माध्यम से पक्ष और समूहों के बीच समस्याओं का समाधान किया जाता है।
  4. भागीदारी और सहयोग: औद्योगिक सम्बन्धों में भागीदारी और सहयोग का महत्वपूर्ण स्थान होता है। इससे संबंधित पक्षों के बीच संवाद बढ़ता है और समस्याओं का समाधान करने में मदद मिलती है।
  5. सामाजिक न्यायवाद: उद्योगिक सम्बन्धों के माध्यम से सामाजिक न्यायवाद को प्रोत्साहित किया जाता है। यह सिद्धांत उद्योग संस्थान और कामगारों के बीच समान और न्यायिक संबंध होने के लिए समर्थित करता है।
  6. युक्तिवादी समाधान: औद्योगिक सम्बन्धों में युक्तिवादी समाधान का उपयोग विभिन्न पक्षों और समूहों के बीच समझौते के लिए किया जाता है। यह उन्हें समस्याओं का समाधान करने और सहयोगी समझदारी दिशा में समर्थित करता है।
  7. संगठित प्रतिबंध और विरोध सिद्धान्त: यह सिद्धान्त संघर्षों और विरोधों को संगठित रूप से करने के पक्ष में होता है। इसका उद्देश्य उनके हकों की रक्षा करना और समस्याओं के समाधान के लिए अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना होता है।

ये सिद्धांत उद्योगिक सम्बन्धों के महत्व को समझाते हैं और समस्त समूहों को संगठित और समरस रूप से काम करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। यह समाज के विकास और समृद्धि को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

औद्योगिक सम्बन्धों में सोशल वर्कर की भूमिका

औद्योगिक सम्बन्धों में सोशल वर्कर की भूमिका महत्वपूर्ण है और वे निम्नलिखित कार्यों को संपादित करते हैं:

  1. श्रमिकों के अधिकारों का संरक्षण: सोशल वर्कर औद्योगिक सम्बन्धों में काम कर्मियों और अन्य जनजातियों के हकों की संरक्षण के लिए संघर्ष करते हैं। वे उन्हें उचित वेतन, सुरक्षित शरण, और योग्य शर्तों की सुनिश्चित करने में मदद करते हैं।
  2. समस्याओं का समाधान: सोशल वर्कर उद्योगिक संस्थानों में होने वाली समस्याओं के समाधान के लिए काम करते हैं। वे भेदभाव, उत्पीड़न, और अन्य समस्याओं का सामना करने में मदद करते हैं।
  3. मधुर सम्बन्धों के विकास: सोशल वर्कर औद्योगिक संस्थानों और कामगारों के बीच समरस सम्बन्धों को विकसित करते हैं। वे उन्हें उचित संवाद, सहयोग, और समझदारी के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
  4. सामाजिक सुरक्षा: सोशल वर्कर उद्योगिक संस्थानों में काम कर्मियों की सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने में मदद करते हैं। वे उन्हें सरकारी योजनाओं, सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों, और अन्य सहायता के लिए नेतृत्व प्रदान करते हैं।
  5. संगठित समाधान: सोशल वर्कर उद्योगिक संस्थानों में होने वाली विवादों और समस्याओं के संगठित रूप से समाधान करते हैं। वे विभिन्न पक्षों के बीच समझौते के लिए काम करते हैं और विवादों को न्यायिक रूप से समाधान करते हैं।

सोशल वर्कर औद्योगिक सम्बन्धों में उपर्युक्त कार्यों के जरिए समाज के हित में काम करते हैं और समस्त समूहों के लिए संबंधों को सुधारने और समस्याओं का समाधान करने में मदद करते हैं। इस प्रकार, वे समाज में उच्च महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।