संस्कृतिकरण किसे कहते हैं ?
भारतीय सामाजिक जाति व्यवस्था में कोई भी नीचे स्तर की जाति का उच्च जाति को आदर्श मानकर उनके रीति-रिवाज, परम्पराओं, रहन-सहन, पहनावा, जीवन शैली का अनुकरण करना उनकी प्रथाओं को अपनाना उसे संस्कृतिकरण कहेंगे। संस्कृतिकरण का प्रभाव जीवन की प्रत्येक गतिविधियों एवं क्रियाकलापों में देखने को मिलता है जैसें- खान पान, नृत्य, कर्मकाण्ड, व्यवसाय, विवाह, भाषा आदि। यह एक सांस्कृतिक प्रक्रिया है परंतु इसके द्वारा सामाजिक स्थिति एवं व्यवसाय में भी परिवर्तन होता है।
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इसमें निम्न स्तर की जाति किसी प्रतिष्ठित जाति से प्रभावित होती है उस जाति के अनुसार व्यवहारों को अपनाती है। हम यह कह सकते है कि यह एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा अपनी प्रस्थिति को ऊॅचा उठाने की कोषिष की जाती है।
संस्कृतिकरण में सिर्फ रीतिरिवाजों परम्पराओं या मान्यताओं को ही नहीं अपनाती बल्कि जिस जाति से प्रभावित होते है या जिस उच्च जाति का अनुकरण करते है उसके अनुसार अपनी मनोवृत्तियों सोच विचार मानसिक स्थिति में भी परिवर्तन लाते है।
संस्कृतिकरण की अवधारणा
संस्कृतिकरण एक सामाजिक और सांस्कृतिक प्रक्रिया है जो विभिन्न समुदायों या समाजों को एकता, समरसता, और सहयोग के आधार पर एक सांस्कृतिक, भाषाई, और धार्मिक अनुभव में समाविष्ट करती है। यह प्रक्रिया समुदायों के अध्यात्मिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक विकास को प्रोत्साहित करती है और विभिन्नता का सम्मान करती है। इसका उद्देश्य समाज के सदस्यों के बीच एक सांस्कृतिक समझौते का संवर्धन करना है जो समृद्धि और समाजिक समरसता के माध्यम से एकता का समर्थन करता है।
संस्कृतिकरण की अवधारणा से पूर्व जाति व्यवस्था को लेकर कठोर मत था कि किसी व्यक्ति की जाति जन्म पर आधारित होती है और वह परिवर्तित नहीं हो सकती या कोई व्यक्ति अपनी जाति को छोड़कर दूसरी जाति की संस्कृति को नहीं अपना सकता। ये विचार एस.वी केतकर के थे।
श्री एस.वी केतकर ने अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ कास्ट इन इण्डिया‘ में लिखा है कि ‘एक जाति की सदस्यता केवल उन व्यक्तियों तक ही सीमित होती है जो कि उस जाति विषेष के सदस्यों से ही पैदा हुए है।“
संस्कृतिकरण की विशेषतायें
- समृद्धि का स्रोत: संस्कृतिकरण समृद्धि और भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है, जिससे समाज और समुदाय के सदस्य आपसी सम्बन्धों में संवृद्धि का अनुभव करते हैं।
- भाषा और संस्कृति के एकीकरण: संस्कृतिकरण भाषा और संस्कृति के एकीकरण को प्रोत्साहित करता है, जो भाषा, कला, साहित्य, और शैली के माध्यम से समुदायों की पहचान और विकास में मदद करता है।
- धार्मिक और सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था: संस्कृतिकरण धार्मिक और सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था को बढ़ाता है, जो समाज में एकता, समरसता, और सहयोग का बौद्धिक वातावरण बनाता है।
- विविधता का सम्मान: संस्कृतिकरण समुदायों की विविधता और विभिन्नता का सम्मान करता है और उन्हें समाज में समानित करता है।
- संवृद्धि के लिए प्रोत्साहन: संस्कृतिकरण समाज और समुदाय के सदस्यों को विकास, समृद्धि, और समाजिक प्रगति के लिए प्रोत्साहित करता है।
- संस्कृतिकरण सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन की प्रक्रिया है।
- संस्कृतिकरण में उच्च जातियों का अनुकरण किया जाता है।
- संस्कृतिकरण के द्वारा निम्न जाति के लोग अपनी प्रस्थिति को ऊॅचा उठाने का प्रयास करते है।
- जीवन जीने के स्तर में परिवर्तन एवं विकास होता है।
- सामान्यतः निम्न जातियों स्थानिय उच्च जातियों का अनुकरण करती है।
संस्कृतिकरण के समाज में प्रभाव
संस्कृतिकरण का समाज पर प्रभाव
संस्कृतिकरण समाज के विभिन्न पहलुओं, धार्मिकता, और सांस्कृतिक अभिवादनों को प्रभावित करने का प्रक्रियात्मक और व्यापारिक प्रक्रिया होता है। यह सामाजिक और मानसिक मानवीयता की विविधता को समझने और समर्थन करने का एक माध्यम भी हो सकता है, लेकिन यह कई बार सामाजिक समस्याओं और विवादों का कारण भी बन सकता है।
संस्कृतिकरण के समाज पर निम्नलिखित प्रभाव हो सकते हैं:
- सामाजिक एकता: संस्कृतिकरण से लोगों के बीच सामाजिक एकता और विशेषता की समझ में सुधार हो सकता है। यह समाज में विभिन्न समृद्धियों, जातियों, और सांस्कृतिक समृद्धियों के बीच समझदारी और सहयोग को प्रोत्साहित कर सकता है।
- सांस्कृतिक विविधता: संस्कृतिकरण से लोगों की सांस्कृतिक विविधता की मूल्यवान बढ़त हो सकती है, जो समृद्धि और समृद्धि के अनुभागी रूप में विभिन्न संस्कृतियों की जीवंतता को प्रकट करती है।
- सामाजिक जागरूकता: संस्कृतिकरण से लोगों की सामाजिक जागरूकता बढ़ सकती है, जिससे वे आपसी समझदारी, समरसता, और समाज में सुधार प्रोत्साहित कर सकते हैं।
- ताक़त और व्यक्तिगत विकास: संस्कृतिकरण से व्यक्तिगत विकास और सामाजिक स्थान में सुधार हो सकता है, जिससे लोग समाज में अधिक समर्थ और प्रभावशाली भूमिका निभा सकते हैं।
- समाज में असमानता: हालांकि संस्कृतिकरण सामाजिक एकता को प्रोत्साहित कर सकता है, यह कई बार समाज में असमानता को भी बढ़ावा देने का कारण बन सकता है। कुछ समयों में, एक संस्कृतिक समृद्धि दूसरी से अधिक महत्वपूर्ण या प्रभावशाली मानी जा सकती है, जिससे असमानता और आत्ममूल्यांकन की समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- धार्मिकता और संवाद: संस्कृतिकरण से धार्मिकता और संवाद की गहराईयों में सुधार हो सकता है, जिससे लोग अपने विचारों और मूल्यों को साझा कर सकते हैं और समृद्ध समाज की निर्माण कर सकते हैं।
- संगठन और सामाजिक नेतृत्व: संस्कृतिकरण से समाज में संगठन की बढ़त और सामाजिक नेतृत्व की प्रोत्साहन हो सकती है, जिससे समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सुधार हो सकता है।
- लोगों के व्यवहार में परिवर्तन
- जाति व्यवस्था की कठोरता में कमी
- अस्पृष्यता में कमी एवं सामाजिक बदलाव
- आर्थिक व राजनीतिक परिवर्तन
- व्यवसाय में उदारवाद
संस्कृतिकरण समाज के विकास और उनकी सामाजिक दृष्टिकोण की मूल्यांकना में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, लेकिन यह विवादों और सामाजिक समस्याओं का भी कारण बन सकता है। इसलिए, संस्कृतिकरण को सावधानीपूर्वक और सामग्री रूप से प्रबंधित करना महत्वपूर्ण है।
इन प्रभावों के माध्यम से संस्कृतिकरण समाज में सामाजिक, सांस्कृतिक, और भाषाई विकास को प्रोत्साहित करता है और समाजिक समरसता और सद्भावना का वातावरण बनाता है।