सामाजिक विकास किसे कहते हैं ?
सामाजिक विकास की अवधारणा
विकास ऐसे परिवर्तनों को लक्षित करता है जो प्रगति की ओर उन्मुख रहते है। विकास एक सामाजिक प्रक्रिया है। इसका सम्बन्ध आर्थिक पहलू से अधिक है। लेकिन सामाजिक विकास केवल आर्थिक पहलू से ही सम्बन्धित नहीं है अपितु सांस्कृतिक तत्वों तथा सामाजिक संस्थाओं से भी सम्बन्धित है।
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हॉबहाउस की अवधारणा
सामाजिक विकास की अवधारणा हॉबहाउस ने स्तर 1929 में प्रकाशित अपनी पुस्तक में उपस्थित की । हॉबहाउस की सामाजिक विकास की अवधारणा पर जीव शास्त्र का प्रभाव स्पष्ट रूप में दिखलायी पड़ता है । जैविक विकास में जीवधारी के शरीर में क्रमशः नये-नये अंगों का विकास होता है और वे नये-नये कार्य करते है ।
हॉबहाउस ने सामाजिक विकास को नैतिक विकास के अनुरूप माना है ।
सामाजिक विकास, विकास के समाजशास्त्र का केन्द्र बिन्दु हैं अत: सामाजिक विकास की विवेचना करना आवश्यक है. जे.पान्सीओ ने सामाजिक विकास को परिभाषित करते हुए कहा है कि विकास एक आंशिक अथवा शुद्ध प्रक्रिया है जो आर्थिक पहलू में परिवर्तन के कारण उत्पन्न होता है।
आर्थिक जगत में विकास से तात्पर्य प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि से लगाया जाता है। सामाजिक विकास से तात्पर्य जन सम्बन्धों तथा ढॉचे से है जो किसी समाज को इस योग्य बनाती है कि उसके सदस्यों की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।
बी.एसडीसूजा के अनुसार सामाजिक विकास वह प्रक्रिया है जिसके कारण अपेक्षाकृत सरल समाज एक विकसित समाज के रूप में परिवर्तित होता है। सामाजिक विकास का विशेष रूप से कुछ अवधारणाओं से सम्बन्धित हैए ये अवधारणाए है.
- ऐसे साधन जो एक सरल समाज को जटिल समाज में परिवर्तित कर देते है
- ऐसे साधन जो सांस्कृतिक आवश्यकताओं को पूरा करते है
- ऐसे सम्बन्ध व ढॉचे जो किसी समाज को अधिकतम आवश्यकता पूर्ति के योग्य
सामाजिक विकास की विशेषताएँ
सामाजिक विकास सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसके फलस्वरूप सरल सामाजिक अवस्था जटिल सामाजिक अवस्था में परिवर्तित हो जाती है।
- सामाजिक विकास की एक दूसरी महत्वपूर्ण विशेषता सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि।
- धर्म के प्रभाव में ह्रासए सामाजिक विकास की एक अन्य विशेषता है।
- सामाजिक विकास में परिवर्तन प्रगति के अनुरूप होता रहता है।
- यह एक निश्चित दिशा का बोध करता है।
- सामाजिक विकास में ष्निरंतरताष् का विशेष गुण होता है।
- एक प्रमुख विशेषता यह है कि इसकी अवधारणा सार्वभौमिक है।
- सामाजिक विकास का विषय क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है।
- सामाजिक विकास का प्रमुख केन्द्र बिन्दु आर्थिक है जो प्रौद्योगिकीय विकास पर निर्भर है।
- सामाजिक विकास की एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि इसके अन्तर्गत सामाजिक सम्बन्धों का प्रसार होता है।
सामाजिक विकास के कारक
सामाजिक विकास के कारकों का अध्ययन करते समय यह ज्ञात होता है कि विभिन्न सामाजिक विचारकों जैसे मिरडल, हाबहाउस तथा आगबर्न आदि ने कुछ सामाजिक कारकों का उल्लेख किया है। इन विचारकों ने जिन प्रमुख सामाजिक कारकों का उल्लेख किया है
सामंजस्य: सामाजिक विकास के लिए समाज के विभिन्न भागों में सामंजस्य होना अति आवश्यक है। यदि समाज के विभिन्न भागों में सामंजस्य नही है तो सामाजिक विकास की गति तीव्र नहीं होगी।
अविष्कार : प्रत्यक्ष रूप से आविष्कार उस समाज के व्यक्तियों की योग्यताए साधन तथा अन्य सांस्कृतिक कारकों से सम्बन्धित है। जैसे.जैसे तेजी से आविष्कार हो रहे हैए वैसे.वैसे सामाजिक सम्बन्धों में परिवर्तन भी हो रहे है।
प्रसार : सामाजिक विकास की प्रक्रिया आविष्कारों के प्रसार पर निर्भर है। विभिन्न आविष्कारों के प्रसार के कारण ही सामाजिक सम्बन्धों में परिवर्तन तथा विकास हो रहा है।
प्रसार : सामाजिक विकास की प्रक्रिया आविष्कारों के प्रसार पर निर्भर है। विभिन्न आविष्कारों के प्रसार के कारण ही सामाजिक सम्बन्धों में परिवर्तन तथा विकास हो रहा है।
ज्ञान भंडार :पुराने ज्ञान के संचय के कारण नवीन आविष्कारों का जन्म हो रहा हैए फलस्वरूप सामाजिक विकास में वृद्धि हो रही है।
औद्योगीकरण : औद्योगीकरण सामाजिक विकास का एक महत्वपूर्ण साधन है। औद्योगीकरण के बिना सामाजिक विकास सम्भव नही है। विकसित समाजों में राष्ट्रीय आय में वृद्धि औद्योगीकरण के फलस्वरूप ही सम्भव हो पा है अत विकासशील देश भी औद्योगीकरण की ओर विशेष ध्यान दे रहे है। राष्ट्रसंघ के आर्थिक एवं सामाजिक विषय विभाग का विचार है कि अल्पविकसित क्षेत्रों की प्रचलित परिस्थितियों में रहन सहन के औसत स्तरों को उठाने का उद्देश्य समुदाय के बहुसंख्यकों की आयों में सुदृढ़ वृद्धियों के स्थान पर थोड़े से अल्पसंख्यकों की आय में अधिक वृद्धि करना है।
अधिकांश कम विकसित देशों में यह बहुसंख्यकों विशाल और ग्रामीण होते है जो ऐसे कृषि कार्य करते है जिनकी न्यूनतम उत्पादन क्षमता बहुत की कम होती है। कुछ देशों में औसत उत्पादिता को बढ़ाना आर्थिक विकास का प्रधान कार्य है। प्रारम्भ में और अधिक सीमा तक यह स्वयं कृषि क्षेत्र में किया जाना चाहिए।
अनेक देशों में अपूर्ण नियुक्त ग्रामीण श्रम को अन्य व्यवसायों में लगाना विकास का अत्यन्त आवश्यक कार्य है। अधिक उन्नत देशों विकास द्वारा प्रारम्भ नए कार्यों की उत्पादिता कृषि की अपेक्षा कहीं अधिक होती है। ऐसी स्थिति में गौण उद्योग विकास का एक महत्वपूर्ण साधन बनता है।
तथापि यह ध्यान में रखना चाहिए कि एक अल्पविकसित देश का सम्पूर्ण सामाजिक तथा आर्थिक संगठन कुछ समय में उत्पादन के कारकों की निम्न कार्य कुषलता के साथ समायोजित हो गया है। अत: औद्योगीकरण की प्रक्रिया को तेज करने का को भी प्रयास बहुमुखी होना चाहिए जो अधिक या कम मात्रा में देश के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन के प्रत्येक तत्व को उसके प्रशासन को और अन्य देशों के साथ उसके सम्बन्धों को प्रभावित करे।
नगरीकरण :नगरीकरण आर्थिक तथा सामाजिक विकास की प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण अंग है और गॉवों से कस्बों की ओर स्थानान्तरण I ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में रहन सहन के स्तर विभिन्न आकार के कस्बों में आर्थिक एवं सामाजिक सेवाएँ प्रदान करने के लिए सापेक्ष व्यय I
जनसंख्या के विभिन्न अंगों के लिए आवास की व्यवस्थाए जलपूर्ति, परिवहन एवं शक्ति जैसी सेवाओं का प्रावधान आर्थिक विकास का स्वरूपए उद्योगों का स्थान निर्धारण एवं विकिरण नागरिक प्रशासनए वित्तीय नीतियों और भूमि उपयोग के नियोजन जैसी अनेक समस्याओं के साथ घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है।
इन अंगों का महत्व उन शहरी क्षेत्रों में जो बडी तेजी से विकसित हो रहे हैए विशेष हो जाता है। भारतवर्ष में नागरीकरण की प्रक्रिया में निरंतर वृद्धि हो रही है। नगरीकरण के कारण आर्थिक स्थिति सुदृढ हो रही है तथा रहन.सहन का स्तर भी उच्च हो रहा है जो सामाजिक विकास में सहायक है।
आर्थिक स्थिति : सामाजिक-सांस्कृतिक विकास के सूचक:- सामाजिक-सांस्कृतिक विकास की स्थिति जानने के कुछ प्रमुख सूचक हैं जिनका वर्णन निम्न प्रकार से है:-
1. शहरीकरण – लोगों के गाँवों से शहरों की ओर पलायन की प्रक्रिया को शहरीकरण की संज्ञा दी जाती है। शहरीकरण औार सामाजिक विकास वर्तमान में एक दूसरे के पर्याय बन गए हैं क्योंकि शहरों में लोगों को दैनिक जीवन की बुनियादी आवश्यकताएं तथा सुविधाएं जैसे जलापूर्ति, नगरीय आवास, सड़क, विद्युत आपूर्ति, सफाई, स्वास्थ्य सेवाएं, पार्कों की सुविधा, मनोरंजन की सुविधा आदि उपलब्ध होती हैं। वास्तव में इन सभी सेवाओं तथा सुविधाओं की उपलब्धता सामाजिक विकास की एक प्रमुख सूचक है।
2. समानता: – सामाजिक विकास का एक अन्य प्रमुख सूचक है सामाजिक समानता एवं निष्पक्षता। समाज में सभी को समान समझा जाना, सभी को बिना किसी भेदभाव-जातिगत, धार्मिक, क्षेत्राीय, अमीर-गरीब, लिंग, रंग या वर्ण आदि के आधार पर – के विकास के लिए समान अवसर उपलब्ध करवाना समानता के अन्तर्गत सम्मिलित किये जाते हैं। इसके अतिरिक्त सामाजिक न्याय प्रदान करना, समस्त व्यवसाय, सरकारी सेवाएँ तथा सरकारी रोजगार सभी को बिना किसी भी प्रकार के भेदभाव के उपलब्ध होना भी सामाजिक समानता के अन्तर्गत शामिल किए जाते हैं।
3. शिक्षा:- शिक्षा सामाजिक विकास के एक प्रमुख सूचक है। एक शिक्षित व्यक्ति समाज एवं देश के लिए एक महत्वपूर्ण सम्पति होता है क्यांकि वह विकास की दिशा में प्रशासन के प्रयासों की आलोचना करने के साथ-साथ अपने सुझाव प्रस्तुत करने में भी सक्षम होता है। वास्तव में विकास केवल सरकार और प्रशासन के प्रयासों का प्रतिफल नहीं होता अपितु इसमें नागरिकों के विचार एवं सुझाव भी महत्वपूर्ण होते हैं।
4. जन-सहभागिता:- शिक्षा और जनसहभागिता एक दूसरे से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। एक शिक्षित व्यक्ति ही सकारात्मक् रूप से सामाजिक विकास के लिए आवश्यक प्रशासनिक क्रियाओं में सहभागी हो सकता है। सामाजिक विकास की प्रक्रिया के लिए यह आवश्यक है कि जनता विकास की प्रक्रिया में भागीदार बने। प्रशासन के द्वारा सामाजिक विकास के लिए जितने भी प्रयास किये जाते हैं उन सभी की सफलता जनता की उन कार्यक्रमों में सकारात्मक भागिदारिता या भूमिका एक पूर्वशर्त है।
5. धार्मिक-सहिष्णुता:- धार्मिक-सहिष्णुता की भावना का पाया जाना सामाजिक-सांस्कृतिक विकास का अन्य महत्वपूर्ण सूचक है। सभी धर्मों का समान आदर तथा किसी भी धर्म के अपनाने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होना सामाजिक-सांस्कृतिक विकास का द्योतक है। विलोमतः धार्मिक उन्माद की भावना का पाया जाना सांस्कृतिक विकास में एक प्रमुख बाधा है।
6. क्षेत्राीय सहिष्णुता:- सामान्यतः अनेक राष्ट्रीयताओं वाले देशों में विभिन्न क्षेत्रों के बीच आपसी सद्भाव का अभाव पाया जाता है। इसे हम सामाजिक-सांस्कृतिक विकास नहीं कह सकते। विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को किसी भी दूसरे क्षेत्रा में समान सम्मान एवं अवसर उपलब्ध कराना तथा भेदभाव एवं पक्षपात रहित व्यवहार करना सामाजिक-सांस्कृतिक विकास के लिए आवश्यक है।
7. भाषा सम्बन्धी विवाद न होना:- भारत जैसे बहुभाषी देशों में सामाजिक-सांस्कृतिक विकास का एक अन्य प्रमुख सूचक है वहां पर भाषाई विवाद न होना तथा भाषा के आधार पर किसी के साथ भेदभाव न करना।